Top Ads on Seema Saxena

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Headline: जम्मू-कश्मीर में पिछले पांच दिनों में 45 जवानों ने शहादत दी है। भारत मां के इन सभी शहीद सपूतों को नमन। श्रद्धांजलि। आक्रोश बहुत है मेरे मन में, आग धधक रही है सीने के अंदर, सवाल उठ रहे हैं मन में कि क्या इसी के लिए मैं और मुझ जैसे लाखों सैनिक परिवार अपने पिता, भाई, पति, बेटे के होते हुए भी एक ऐसी ज़िंदगी गुजारते हैं कि कब उम्र निकल जाती है, पता ही नहीं चलता। हर दिन, हर पल मन में ये सोच आती रहती है कि हमारे अपने लौट कर कब आएंगे और आ भी पाएंगे या नहीं? मेरे पिता तो नेवी में कमांडर थे, लेकिन पति थलसेना में अफसर हैं, कभी-कभी आर्मी क्वार्टर में उनके साथ कुछ वक्त तक रहने का मौका भी मिला था। हम सैनिक परिवारों के साथ एक और परेशानी ये होती है कि पति दूर-दराज तैनात होते हैं, जबकि हमें अपने बच्चों को पढ़ाने, माता-पिता, सास-ससुर की देखभाल अकेले करना होता है। लेह में एक साल तक मैं रही थी, मिट्टी के बने घरों में वहां फौजी रहते हैं। ठंड इतनी होती है कि सब्जियां उगती नहीं, रोटी किसी तरह बन भी जाए तो अचार के साथ खाकर किसी तरह पेट भरते हैं। एक टिन के बक्से में फौजी का सारा सामान होता है और तकिया की जगह सिर के नीचे हथियार रखकर सोते हैं। उनकी नींद भी हम आम लोगों की तरह नहीं होती, करीब-करीब जागते हुए सोते हैं क्योंकि किसी भी पल कोई भी खतरा आ सकता है। ये कोई शिकवा-गिला नहीं है, ये मैं आपसे हमारी ज़िंदगी इसलिए साझा कर रही हूं ताकि आप समझ सकें कि सैनिक कहते किसे हैं? सेना में, सुरक्षा बलों में कोई सिर्फ वेतन के लिए नहीं जाता, वतन के लिए कुछ कर गुजरने के जज्बात से जाता है, सीने पर गोली खानी भी पड़े तो इसके लिए तैयार होकर जाता है और उनके परिवार भी इसी जज्बे से उन्हें विदा करते हैं। लेकिन क्या शहादत के बाद ही एक सैनिक सम्मान, इज्जत का हकदार है? जिनकी ज़िंदगी का एक-एक पल ही कुर्बानी है, क्या उन्हें जीते-जी इसका सम्मान नहीं मिलना चाहिए? इक्के दुक्के अपवादों को छोड़ दें तो क्या आप सैनिकों को देश के सिस्टम को सुधारने वाली संस्थाओं में देखते हैं? सत्ता की राजनीति करने वाले नेताओं के बीच कभी देशसेवा का संकल्प करने वाले सैनिकों को चुनते हैं? कलेजे पर हाथ रखकर कहिए कि पुलवामा में जो शहीद हुए हैं, उनमें से कितने नाम आपको याद हैं? चार दिन में ही जब हम अपने शहीदों के नाम तक भूल जाते हैं तो कितने दिन तक उनकी जयकार करेंगे? सैनिकों को अच्छा लगता है, ज
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Headline: राष्ट्रीय अध्यक्ष, महिला प्रकोष्ठ, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी
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Headline: पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को हिंदुस्तान के बारे में बयान देने से पहले अपने मुल्क की करतूतों के बारे में भी दुनिया को बताना चाहिए। इमरान खान का बयान देख रही थी कि भारत चरमपंथ पर बढ़ रहा है, जिससे उसके कई टुकड़े हो जाएंगे। दुनिया जानती है कि खुद पाकिस्तान के दो टुकड़े हो चुके हैं और अगर अभी भी उसकी हरकतें नहीं सुधरीं तो न जाने कितने टुकड़े होंगे। जहां तक हिंदुस्तान का सवाल है, अब भारत के टुकड़े करने की बात करने वालों को भी औकात दिखाने का हौसला हर हिंदुस्तानी में है। पाकिस्तान में रहने वाले गैर मुस्लिमों खासकर हिंदुओं के साथ जैसा सलूक किया गया, वो किसी से छिपा नहीं है। ऐसे में बेशर्म पाकिस्तान की ये औकात नहीं कि वो भारत के खिलाफ कोई बयान दे सके।
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Headline: दिल्ली में दो दिन से जो हालात बने हुए हैं, वो चिंताजनक हैं। लोगों की जान जा चुकी है, पुलिस कांस्टेबल शहीद हो चुके हैं, कई पुलिसकर्मी भी घायल हैं। दिल्ली की कानून-व्यवस्था सीधे केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन है, ऐसे में देश की राजधानी की ये स्थिति पूरे देश के लिए गंभीर चिंता बन गई है। खुलेआम हाथ में रिवॉल्वर लेकर पुलिसवाले के सामने ताने हुए लोगों की तस्वीरें, वीडियो वायरल हैं। ये किसी भी तरह से अच्छा नहीं है। कानून को हाथ में लेने की इजाजत किसी को नहीं है और इस तरह की स्थिति के लिए जिम्मेदार हर दोषी को, हर दंगाई को, हर भड़काऊ तत्व को सलाखों के पीछे होना चाहिए।
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Headline: मध्य प्रदेश में चल रहे राजनीतिक घटनाक्रम को लेकर बहुत तरह की बातें हो रही हैं, आपकी तरह मेरी भी नज़र एक राजनीतिज्ञ होने के नाते इस पर बनी हुई है। जहां तक आदर्श प्रक्रिया की बात है तो जनता ने अपना फैसला विधानसभा चुनाव में ही सुना दिया था कि किसे सत्ता में आना है और किसे विपक्ष में, लेकिन राजनीति का एक सच ये भी है कि सरकार आदर्श से नहीं चलती, व्यावहारिकता से चलती है। बहुमत जिसके साथ होता है, सत्ता उसकी होती है और सत्ता की जिम्मेदारी होती है कि वो अपना बहुमत बनाए रखे। दल-बदल करना, एक पार्टी से दूसरी पार्टी में जाना, सरकार गिरना और बनना, ये सब राजनीति का ही हिस्सा है। ऐसे में कौन नेता किस दल में है या किसमें जाएगा, ये उसका व्यक्तिगत निर्णय होता है। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ी है तो इसकी कुछ वजहें भी होंगी। ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती, ये हम सब जानते हैं। दूसरी बात ये कि कांग्रेस को बीजेपी पर सारा दोष मढ़ने की बजाय खुद के भीतर भी झांकना चाहिए कि इतने विश्वसनीय कांग्रेसी नेता को वो साथ बनाए रखने में नाकाम क्यों रही? जहां तक बीजेपी की बात है, अगर उसकी जगह खुद कांग्रेस भी होती तो सामने परोसी हुई सत्ता से मुंह फेर लेती क्या?
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Headline: राष्ट्रीय अध्यक्ष, महिला प्रकोष्ठ, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी
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Headline: कर्नाटक में बैंगलुरू के पास फंसे पूर्णिया के मजदूरों का ये ग्रुप दिन में जंगली इलाके में रहता था और पानी वगैरह पास के आश्रम से ले आता था। इसी बीच, ऐसे ही इधर-उधर फंसे लोगों को एक साथ रखने के लिए प्रशासन लेकर गया, लेकिन भीड़ इतनी ज्यादा हो गई कि संभालना मुश्किल हो गया..प्रशासन की कोशिशों के बावजूद व्यवस्था बन नहीं पा रही थी तो सभी को 2-2 किलो चावल राशन देकर वापस उसी इलाके में छोड़ दिया गया, जहां से उन्हें ले जाया गया था। अब इनके साथ वही दिक्कत फिर से हो रही है कि न रहने को जगह है और न खाने को पर्याप्त सामान... Upendra Kushwaha Nitish Kumar Sushil Kumar Modi
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Headline: मैंने आपसे कर्नाटक में फंसे बिहार के पूर्णिया के 20-25 मजदूरों के बारे में बताया था, मुझे ये जानकारी देते हुए खुशी हो रही है कि उन सभी की इच्छा के मुताबिक उनके घर पहुंचाने में भी मेरी मदद काम आई है। अभी भी महाराष्ट्र और कर्नाटक से बिहार के बहुत से प्रवासी मजदूरों के फोन मेरे पास लगातार आ रहे हैं कि तमाम घोषणाओं के बावजूद वो घर नहीं जा पा रहे हैं। इसी समस्या को देखते हुए मैं ये पोस्ट कर रही हूं।
महाराष्ट्र और कर्नाटक में रह रहे बिहार के तमाम प्रवासी मजदूर, चाहे इनकी संख्या कितनी भी हो, मुझसे मेरे फेसबुक पोस्ट के जरिये या मेरे मोबाइल फोन पर संपर्क कर सकते हैं। मेरी कोशिश रहेगी कि उनके नाम, पता और मोबाइल नंबर की लिस्ट बनाकर संबंधित अधिकारियों को भेजकर जितनी जल्दी हो सके, सबको उनके घर भिजवा सकूं। मैंने प्रशासनिक अधिकारियों से बात करके कई मजदूरों को भिजवाया भी है और कई के लिए बात भी कर चुकी हूं। कई मजदूर ऐसे हैं, जिन्हें ट्रेनों के बारे में जानकारी ही नहीं है तो कई ऐसे भी हैं, जो इस वक्त जहां हैं, वहां से ट्रेनें ही नहीं हैं। इन तक सही सूचना भी नहीं पहुंच पा रही है कि कैसे टिकट कटाना है, कैसे आवेदन करना है और कब, कैसे जाना है? आपदा काल में अब तक का मुश्किल वक्त जिस तरह हमने यथासंभव सेवा करते हुए निकाला है, वैसे ही आगे भी करना है, इसलिए मैं इस पोस्ट के जरिये आप सभी से आग्रह कर रही हूं कि ज़रूरतमंद प्रवासी बिहारी मुझसे फौरन संपर्क करें और बाकी लोग भी ऐसे ज़रूरतमंदों तक ये सूचना पहुंचाकर मुझे सेवा का अवसर दें। आपको जानकारी इस तरह देनी है,
नाम-
पता-
उम्र-
कहां से यात्रा-
कहां तक यात्रा-
मोबाइल नंबर-
आप जितनी जल्दी संपर्क करेंगे, मेरे लिए उतनी ही ज्यादा सुविधा होगी। धन्यवाद।
मोबाइल नंबर 9373041000 पर संपर्क करें।
Button label: N/Aमहाराष्ट्र और कर्नाटक में रह रहे बिहार के तमाम प्रवासी मजदूर, चाहे इनकी संख्या कितनी भी हो, मुझसे मेरे फेसबुक पोस्ट के जरिये या मेरे मोबाइल फोन पर संपर्क कर सकते हैं। मेरी कोशिश रहेगी कि उनके नाम, पता और मोबाइल नंबर की लिस्ट बनाकर संबंधित अधिकारियों को भेजकर जितनी जल्दी हो सके, सबको उनके घर भिजवा सकूं। मैंने प्रशासनिक अधिकारियों से बात करके कई मजदूरों को भिजवाया भी है और कई के लिए बात भी कर चुकी हूं। कई मजदूर ऐसे हैं, जिन्हें ट्रेनों के बारे में जानकारी ही नहीं है तो कई ऐसे भी हैं, जो इस वक्त जहां हैं, वहां से ट्रेनें ही नहीं हैं। इन तक सही सूचना भी नहीं पहुंच पा रही है कि कैसे टिकट कटाना है, कैसे आवेदन करना है और कब, कैसे जाना है? आपदा काल में अब तक का मुश्किल वक्त जिस तरह हमने यथासंभव सेवा करते हुए निकाला है, वैसे ही आगे भी करना है, इसलिए मैं इस पोस्ट के जरिये आप सभी से आग्रह कर रही हूं कि ज़रूरतमंद प्रवासी बिहारी मुझसे फौरन संपर्क करें और बाकी लोग भी ऐसे ज़रूरतमंदों तक ये सूचना पहुंचाकर मुझे सेवा का अवसर दें। आपको जानकारी इस तरह देनी है,
नाम-
पता-
उम्र-
कहां से यात्रा-
कहां तक यात्रा-
मोबाइल नंबर-
आप जितनी जल्दी संपर्क करेंगे, मेरे लिए उतनी ही ज्यादा सुविधा होगी। धन्यवाद।
मोबाइल नंबर 9373041000 पर संपर्क करें।

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Headline: राष्ट्रीय अध्यक्ष, महिला प्रकोष्ठ, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी
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Headline: उम्मीद है कि आप सभी लोग लॉकडाउन 2 का पूरी तरह पालन कर रहे होंगे और यही हमारे पास विकल्प भी है क्योंकि कोरोना की अभी तक न तो कोई दवा है और न कोई वैक्सीन...तो घर में ही रहकर ही बचाव कर सकते हैं। लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों तक राहत पहुंचाने के अभियान में मैं लगी हुई हूं, ये तो आप जानते ही हैं। इसी बारे में ये कहना चाहती हूं कि कुछ ऐसे नंबर्स से मेरे पास मिस्ड कॉल भी आए हैं। हो सकता है कि इनके पास आउटगोइंग कॉल के लिए पैसे न बचे हों। मैंने इन नंबर्स पर कॉल किया तो कुछ से संपर्क हुआ, कुछ से नहीं हो पाया।
मैं ये भी फेसबुक पर जुड़े मित्रों के जरिये साफ करना चाहती हूं कि मुझसे सिर्फ पुणे या महाराष्ट्र के किसी शहर में फंसे बिहार के प्रवासी ही नहीं, बल्कि देश में कहीं भी मुश्किल में फंसे बिहार के ज़रूरतमंद संपर्क कर सकते हैं। हां मैं निजी तौर पर सिर्फ पुणे और आसपास तक ही राहत पहुंचा सकती हूं, लेकिन बाकी जगहों पर आपतक पहुंचने के लिए वहां के स्थानीय प्रशासन को आपका संपर्क निश्चित रूप से भेज सकती हूं और भेजती भी रही हूं।
इसलिए मैं संपर्क करने वाले लोगों की एक और लिस्ट बना रही हूं, पहले की लिस्ट भेजी जा चुकी है, अब इस नई लिस्ट को बिहार के रेज़ीडेंट कमिश्नर के पास भेजूंगी ताकि इनतक सहायता पहुंचाई जा सके। मैं जो फाइल आपसे इस पोस्ट के साथ साझा कर रही हूं. उसे ध्यान से देखें और इसी तरह अपना नाम, पता, परिवार के सदस्यों की संख्या और मोबाइल नंबर कमेंट बॉक्स में लिखकर भेजें। जिन नंबर्स का मैंने कॉलम बना रखा है, उससे जुड़ी जानकारी जितनी जल्दी जुट पाएगी, उनतक पहुंच पाना उतना आसान हो सकेगा।
Button label: N/Aमैं ये भी फेसबुक पर जुड़े मित्रों के जरिये साफ करना चाहती हूं कि मुझसे सिर्फ पुणे या महाराष्ट्र के किसी शहर में फंसे बिहार के प्रवासी ही नहीं, बल्कि देश में कहीं भी मुश्किल में फंसे बिहार के ज़रूरतमंद संपर्क कर सकते हैं। हां मैं निजी तौर पर सिर्फ पुणे और आसपास तक ही राहत पहुंचा सकती हूं, लेकिन बाकी जगहों पर आपतक पहुंचने के लिए वहां के स्थानीय प्रशासन को आपका संपर्क निश्चित रूप से भेज सकती हूं और भेजती भी रही हूं।
इसलिए मैं संपर्क करने वाले लोगों की एक और लिस्ट बना रही हूं, पहले की लिस्ट भेजी जा चुकी है, अब इस नई लिस्ट को बिहार के रेज़ीडेंट कमिश्नर के पास भेजूंगी ताकि इनतक सहायता पहुंचाई जा सके। मैं जो फाइल आपसे इस पोस्ट के साथ साझा कर रही हूं. उसे ध्यान से देखें और इसी तरह अपना नाम, पता, परिवार के सदस्यों की संख्या और मोबाइल नंबर कमेंट बॉक्स में लिखकर भेजें। जिन नंबर्स का मैंने कॉलम बना रखा है, उससे जुड़ी जानकारी जितनी जल्दी जुट पाएगी, उनतक पहुंच पाना उतना आसान हो सकेगा।

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Headline: कई लोगों से इन दिनों हुई बातचीत में एक सवाल मेरे सामने आया है, जिसे आपसे साझा कर रही हूं। देश की आर्थिक स्थिति जो पहले से ही बिगड़ी हुई थी, कोरोना की वजह से और ज्यादा बिगड़ चुकी है, जिससे बड़ी संख्या में लोग अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं। ऐसा लग रहा है कि उनका भरोसा, आत्मविश्वास पूरी तरह हिल गया है। आपदा काल में समाजसेवा के दौरान संवाद में एक युवा मुझसे पूछ रहा था कि दीदी मैं तो समझ ही नहीं पा रहा कि क्या करूं? नौकरी के लिए तैयारी कर रहा था, अब हालत ये है कि जिनकी नौकरियां हैं, वही हटाए जा रहे हैं तो हम जैसे फ्रेशर्स को कौन काम देगा? मैंने उनसे पूछा कि आप किस विषय के छात्र रहे हैं और क्या पढ़ते रहे हैं? उन्होंने कहा कि मैथ्स। मैंने उन्हें सुझाव दिया कि ये तो ऐसा विषय है, जिसमें सबसे ज्यादा संभावनाएं हैं तो आप ऐसा क्यों नहीं करते कि ऑनलाइन टीचिंग करें? उन्होंने कहा कि इसमें भी बहुत कंपीटिशन है, बड़े-बड़े कोचिंग इंस्टीट्यूट्स हैं, मुझसे कौन पढ़ेगा? मैंने सुझाव दिया कि वहां फीस भी तो ज्यादा होती है, जिसमें हर कोई सक्षम नहीं है तो आप कम फीस में अच्छी शिक्षा का एक प्रोग्राम डेवलप करें और शुरुआत तो करें, अभी कुछ नहीं है तो खोना भी कुछ नहीं है। मैंने उनसे कहा है कि अगर इसे जमाने में कोई मदद चाहिए तो मैं हूं ही। उन्होंने कहा है कि मैं कोशिश करके देखता हूं।
दरअसल, किसी भी काम की शुरुआत ही सबसे बड़ी बाधा होती है, आपने कदम बढ़ा दिया तो फिर रास्ते बनते चले जाते हैं। मैं जब अपनी सिक्यूरिटी एजेंसी खोलने वाली थी तो सबसे बड़ी बाधा ये थी कि इस क्षेत्र में अकेली महिला उद्यमी थी। तब ये बिज़नेस डेवलप भी नहीं था, इसके बावजूद मैंने इसके प्रेज़ेंटेशन तैयार किए, खुद ट्रैवल करके अलग-अलग राज्यों में जाकर अप्लाई किया, इंटरव्यू दिए। अगले पोस्ट में आपसे ये भी बताऊंगी कि कैसे मुझे सराहना मिली और आगे का रास्ता तैयार हुआ। फिलहाल तो इतना ही कहना चाहूंगी कि ऐसा कुछ भी नहीं है कि सबकुछ खत्म हो गया हो, बस समय बदला है तो हमें बदले समय के मुताबिक अपनी सोच को बदलना होगा, कुछ अलग हट कर सोचना होगा।
Button label: N/Aदरअसल, किसी भी काम की शुरुआत ही सबसे बड़ी बाधा होती है, आपने कदम बढ़ा दिया तो फिर रास्ते बनते चले जाते हैं। मैं जब अपनी सिक्यूरिटी एजेंसी खोलने वाली थी तो सबसे बड़ी बाधा ये थी कि इस क्षेत्र में अकेली महिला उद्यमी थी। तब ये बिज़नेस डेवलप भी नहीं था, इसके बावजूद मैंने इसके प्रेज़ेंटेशन तैयार किए, खुद ट्रैवल करके अलग-अलग राज्यों में जाकर अप्लाई किया, इंटरव्यू दिए। अगले पोस्ट में आपसे ये भी बताऊंगी कि कैसे मुझे सराहना मिली और आगे का रास्ता तैयार हुआ। फिलहाल तो इतना ही कहना चाहूंगी कि ऐसा कुछ भी नहीं है कि सबकुछ खत्म हो गया हो, बस समय बदला है तो हमें बदले समय के मुताबिक अपनी सोच को बदलना होगा, कुछ अलग हट कर सोचना होगा।